
आज की पोस्ट में हम कहावतें और उनकी कहानियों के बारे में जानकारी दे रहें है, पोस्ट को अंत तक पढ़िए. आशा है यह जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी. यह जानकारी आप harkhabar.in पर देख रहे हैं. इसी तरह की उपयोगी जानकारियों के लिए हमारी वैबसाइट का विजिट करते रहिये –
आए थे हरिभजन को , औंटन लगे कपास
कबीर (Kabir das) युवावस्था में ही ईश्वर की ओर झुक गए थे। न चाहते हुए भी कबीर 3 को पारिवारिक बंधन में बंधना पड़ा था। जब पारिवारिक बंधन में बंध ही गए तो दुनिया से विमुख कैसे होते। अत: वे अपनी गृहस्थी चलाने के लिए काम करने लगे थे। प्रात:काल स्नान-ध्यान करके वे अपने काम में लग जाते थे। मजदूर की तरह सुबह से शाम तक लगे रहते।
कुछ दिन बाद वे पक्के जुलाहे बन गए थे। और कुछ दिन बाद उन्होंने अपनी ही कपड़े बुनने की खड्डी लगा ली थी। दिनभर ताने-बाने चलाते रहते और कपड़ा तैयार होता रहता। कपड़ा बुनने के साथ-ही-साथ प्रभु धुन में लगे रहते। खड्डी का पैना तानों-बानों में इधर से उधर दौड़ता रहता। और मन ईश्वर और माया की उधेड़बुन में। जब मन होता तो ईश्वर के भक्तसंतों के साथ सत्संग करने लगते। जब उन्हें गृहस्थी की याद आती तो घर आ जाते और अपने काम में लग जाते।
कबीर गृहस्थ होते हुए संत और संत होते हुए गृहस्थ थे। वे कहते थे कि काम करना भी एक तरह का प्रभु की आराधना है। प्रभु की उपासना है। रोजी-रोटी कमाने को सामाजिक धर्म और भक्ति-आराधना को वे ईश्वर प्राप्ति का साधन मानते थे।
जब उनके यहां कमाल और कमाली का जन्म हुआ, तो वे जरूरतों के मुताबिक काम में और अधिक समय देने लगे।अब कबीर स्नान-ध्यान करके जल्दी ही कपास से सूत, सूत से धागा, धागा से पूनी आदि बनाने लगे और शाम तक लगे रहते। अब कबीर काम करते-करते ईश्वर में ध्यान लगाते। इसी कारण कबीर संतों से मिल नहीं पाते थे। अब संत आदि स्वयं ही चलकर कबीर से मिलने आने लगे थे। अधिकतर साथी संत उनकी साधना और उनके गृहस्थ जीवन को भलीभांति जानते थे। _एक बार उनके प्रिय साथी संत उनसे मिलने के लिए घर आए। जब वे कबीर की कुटिया के पास पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि कबीर अपने काम में लगे हुए हैं। कबीर अपने काम करने में तल्लीन थे और कुछ धीमे-धीमे गुनगुनाते जा रहे थे। वे खड़े-खड़े कबीर को काम करते देखते रहे। जब कबीर की नजर उन पर पड़ी तो वे कह उठे, “आओ संतगण बैठो ” कबीर के साथी फिर भी कबीर को एकटक देखते रहे।
कबीर ने कहा ” क्या सोच रहे हो “
उसमें से एक संत ने कबीर को ओर देखते हुये कहा –
‘ आए थे हरिभजन को , औंटन लगे कपास ”
कबीर थोड़ा मुस्कुरा भर दिये ।
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