कहावतें और उनकी कहानियां ” अंधा बांटे रेबड़ी, घूम-घूम अपने को देय “

https://harkhabar.in
https://harkhabar.in

” अंधा बांटे रेबड़ी, घूम-घूम अपने को देय “

andhe-bante-rabadi-ghum-ghum-kar-apne-ko-dey

आज की पोस्ट में हम कहावतें और उनकी कहानियों के बारे में जानकारी दे रहें है, पोस्ट को अंत तक पढ़िए. आशा है यह जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी. यह जानकारी आप harkhabar.in पर देख रहे हैं. इसी तरह की उपयोगी जानकारियों के लिए हमारी वैबसाइट का विजिट करते रहिये –

एक गड़रियों का गांव था। ये लोग अधिकतर बकरियां और भेड़ें चराने का काम करते थे। उनमें कई लोग ऊंट भी रखते थे। ऊंट से गांव के आस-पास लगने वाले हाटों का सामान लाते, ले जाते थे।

एक दिन एक गड़रिया ऊंट खरीदकर लाया। उसने इस खुशी में लोगों को प्रसाद बांटना चाहा। उसने दो व्यक्तियों को बनिया की दुकान पर भेज दिया। बनिया के यहां उस समय कोई मिठाई तैयार नहीं थी, लेकिन रेबाड़या थीं। वे लोग दो सेर रेबडियां खरीदकर ले आए। उस समय उंटबरिया के दरवाजे पर सैकड़ों लोग इकट्ठे थे। दोनों ने रेबड़ियों का अंगोछा चबूतरे पर रख दिया। – अब रेबड़ियां बांटने का समय आया तो समझदार और बुजुर्ग व्यक्ति को चुनने के लिए लोग सोचने लगे। वहां बैठे नैनसुख का नाम लिया गया। एक आदमी उठा और नैनसुख को लेकर आया।रेबड़ियों का अंगोछा नैनसुख को पकड़ा दिया। नैनसुख ने अंगोछे की झोली बनाकर बाएं कंधे पर टांग ली।

नैनसुख के हाथों में झोली आते ही आवाजें आने लगी थीं। कोई कहताबाबा मुझे देना रेबड़ी। कोई कहता-ताऊजी, मुझे देना रेबड़ियां । इस प्रकार तरह-तरह की आवाजें आने लगी भीड़ में से।

नैनसुख थे तो बड़े होशियार लेकिन थे अंधे,बीच में खड़े थे और चारों ओर से आवाजें सुनाई पड़ रही थीं। वे आंखें फाड़-फाड़कर आवाजें पहचान रहे थे। आवाजें पहचानने में उन्हें महारथ हासिल था। आवाज से ही वे जान – लेते थे कि बोलने वाले का नाम क्या है? उन्हें अपने घरवालों की, घर के

आस-पास के लोगों की, उनसे रोज बतियाने वालों की आवाजें याद थीं। __एक आवाज आई, “काका मुझे देना।” नैनसुख तुरंत समझ गए कि यह तो आवाज मेरे भतीजे की है। नैनसुख बोले, “कौन, श्यामोला?” उत्तर मिला, “हां काका।” नैनसुख ने ‘ले’ कहा और रेबड़ियों की एक मुट्ठी – उसकी ओर बढ़ा दी। दूसरी आवाज सुनाई दी, “दद्, मुझे भी देना।” नैनसुख ने आवाजों की भीड में पहचानते हुए पूछा, “कौन, रामलाल?” उत्तर मिला, “हां ददद।” नैनसुख ने रेबड़ियों की एक मुट्ठी फिर निकाली और बढ़ा दी उस ओर। रामलाल ने रेबड़ी ले लीं। अबकी बार एक आवाज पीछे से आई. “मझे भी देना चाचा।” यह आवाज रामप्यारी तरंत पीछे घूम गए और बोले, “कोन, रामप्यारी?” उत्तर मिला हाँ चाचा।” एक मुट्ठी उस ओर बढ़ाते हुए कहा, “ले।” नैनसुख रेबड़ियां बांटते-बांटते चकरघिन्नी हो गए कभी दाएं घूमते कभी बाएं घूमते। कभी पीछे घूमते । फिर उसी ओर घूम जाने वाला यही समझेगा कि भीड़ में कोई घूम-घूमकर नाच रहा है।

नैनसुख को थोड़ी-थोड़ी झुंझलाहट होने लगी थी। लोग सादर कि नैनसुख उन्हीं को रेबड़ियां दे रहे हैं जिनकी वे आवाज पहचान जो उनके थे। तो अब जैसे ही वे रेबड़ियों की मुट्ठी झोली से निकाल दसरे लोग बीच में ले लेते। और जब नैनसुख किसी की आवाज को सुनता तो नैनसुख बोल पड़ते, “अभी तो तुझे दी थी। फिर दोबारा मांग रहा है।” नैनसुख की आवाज सुनकर वह व्यक्ति बोलता, “मुझे नहीं मिली। वो तो सदाशिव ने ले लीं।” ____यह तमाशा देखकर कुछ लोग फुसफुसाने लगे कि नैनसुख तो अपने लोगों को ही रेबड़ियां बांट रहे हैं। तो भीड़ में से एक नैनसुख के बुजुर्ग साथी ने ही कहा, “भैया, ‘अंधा बांटे रेबड़ी, घूम-घूम अपने को देय’।”

यह भी पढ़ें –

आए थे हरिभजन को , औंटन लगे कपास

मियां की जूती , मियां का सर

ऊंट की चोरी , निहुरे-निहुरे